जब सगर लेहेराकर किनअरोको अप्नी बाहोम समाजएगि
जब पवन हरा खेतोमे मन्द गतिसे सारी फसलको झुलाने लगेगि
जब गगनोमे चान्द बादलकी पर्देको हtaकर मुस्कुराने लगेगि
जब बारीस होनेकी बाद सारी धर्ती तृप्त होकर खिल्ने लगेगि
उस अनुपम घडीमे सारी दुनियको भुल्कर्
जब मे आप्की शिने मे आउङा
वो कोही साधारण मिलन के लिए मत समझ्ना
जिस महान घडीकी इन्तजार हजारो साल से किया था
आप्की अस्तित्वोमे खो जनेक
वो कोही प्यास बुझाने के लिए मत समझ्ना
अब समय हुइ हे क्योकी सारी धर्ती प्रेम से प्रफुल्लित हे
अब मिल्ना जरुरी हे क्युकी सारी जगत प्रज्ञा से जग उठे हे
ए मत पुछ्ना कि कब होती हे मिलन कि उत्तम समय
जिस समय चित्त प्यार मे डुब्ने लगेगी उसि छन्
सब चिज पाकर भि पाने कि आकान्क्ष्या अन्त नही हुवा
सब सुख मे भि क्यु मन्मे कुच चिज कि कमी था
कब रुकेगी ए चाह कब अन्त होगी ए अहन्कार्
कित्नी दुर हे अनन्द कित्नी देर के बaद अएगी निर्वान्
अब तो कोही चाह ना रहा ना रहा कुच बिचार
सारी दुनिया छोद दि बिलिन होकर यिस अस्तित्वमे
एक सुन्दर बचिकी मुस्कुराहat मे सबार होकर अएगी वो
सुबहकी पवनमे हिमालकी सितलता लेकर अएगी वो
दर्द से भरा आसुवोंकी बुँद मे फिसल्कर आएगी वो
मध्य रात्की सुनसान गगनकी शान्ति लेकर आएगी वो
पहाड्की उपर से बहनवाली नदी कि निस्चल्तामे आएगी वो
हा वो अब जरुर आएगी क्युकी अब सारी भ्रम समाप्त हुवा हे
चेतना कि दिप जग्मगाकर अन्धकारको रोशनी से भर रही हे
यिसी दिप कि प्रकास होकर परमात्मा कि अनुपम आगमन होगि
जैसे सुबहकी सुरज्की पेहेली किरन कि धर्ती मे आगमन होती हे